"शिक्षक भी इंसान है”
एक दिन था…
जब मन बहुत खुश था,
आँखों में सपने थे, और दिल में गर्व—
क्योंकि मैं एक विश्वविद्यालय का हिस्सा बनने जा रही थी।
चुना गया था मुझे मेहनत से,
इंटरव्यू की कसौटी पर,
प्रक्रियाओं की पारदर्शिता से।
पहले दिन, वरिष्ठों से संवाद हुआ,
अनुशासन, समर्पण और संकल्प—
इन तीन स्तंभों पर खड़ी
एक आदर्श संस्था दिखी।
हर दिन लगता था—
“हम किसी साधारण जगह नहीं,
एक मूल्यवान परिवार का हिस्सा हैं।”
और यह गर्व हर साँस में बस गया।
जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं,
मीटिंग्स बढ़ीं, प्रेरणा भी बढ़ी।
हर शब्द और बेहतर काम करने की ऊर्जा देता रहा।
वर्ष बीते… मूल्यांकन हुआ,
मेहनत को पहचान मिली,
और वेतनवृद्धि ने
फिर से उत्साह जगा दिया।
नए प्रोजेक्ट, नए आयोजन, नए प्रयोग—
हमने अपने स्कूल को
नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
इंटर-यूनिवर्सिटी मंचों पर
हमारी पहचान बनी,
बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों के बीच
हमारे छात्र खड़े दिखे।
स्टार्टअप, बूटकैंप, प्रतियोगिताएँ—
UG(SCS) के छात्र
PG और MBA छात्रों से
कंधे से कंधा मिलाकर लड़े,
और जीते भी।
हमने छात्रों को इस तरह तैयार किया
कि वे सिर्फ़ रोज़गार ढूँढने वाले नहीं,
रोज़गार देने वाले भी बन सके।
लेकिन… इसी बीच
एक सवाल धीरे-धीरे दिल में चुभने लगा—
अगर हमारी मेहनत जारी है,
हमारा समर्पण जारी है,
लेकिन हमारी मेहनताना
रोक दी जाए—
तो क्या यह प्रेरणा
यूँ ही जीवित रह पाएगी?
हमें पता है—
शिक्षक का पहला धर्म
छात्र होता है।
और हम यह धर्म पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं।
छात्रों का नुकसान न हो—
यह जिम्मेदारी आज भी हमारी ही है।
पर क्या
शिक्षक सिर्फ शिक्षक है?
क्या वह इंसान नहीं?
उसकी भी एक परिवार है,
माँ–बाप हैं, बच्चे हैं,
उनकी फीस है, उनकी दवाइयाँ हैं,
उनकी ज़रूरतें हैं।
क्या भावनाओं का पेट नहीं होता?
क्या जिम्मेदारियों को रोटी नहीं चाहिए?
अगर कोई बीमार है—
तो क्या “जिम्मेदार” कहलाने वाले
अस्पताल का बिल भरेंगे?
अगर EMI बाकी है—
तो क्या नैतिक भाषण
बैंक को समझा पाएंगे?
आज सवाल यह नहीं कि
शिक्षक जिम्मेदार है या नहीं—
सवाल यह है कि
क्या व्यवस्था शिक्षक के प्रति जिम्मेदार है?
हम भी चाहते हैं
संस्था आगे बढ़े,
परिवार सुरक्षित रहे—
पर क्या यह संभव है
जब हमारी मेहनत
मौन में बदल दी जाए?
यह विरोध नहीं, यह पुकार है।
यह अवज्ञा नहीं, यह आत्मसम्मान है।
क्योंकि याद रखिए—
शिक्षक जब टूटता है,
तो सिर्फ एक व्यक्ति नहीं,
पूरी पीढ़ी कमज़ोर पड़ जाती है।
शिक्षक भी इंसान है।
और इंसान सम्मान और सुरक्षा
दोनों का अधिकारी है।
प्रा. डॉ. मनिषा मोरे
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